गणपति के वाहन चूहे की कथा

❄❄❄❄❄🏵❄❄❄❄❄
         *गणपति के वाहन चूहे की कथा*

*सुमेरू पर्वत पर सौभरि ऋषि आश्रम बनाकर तप करते थे । उनकी पतिव्रता पत्नी मनोमयी इतनी रूपवती थीं कि, उनके रूप पर यक्ष गंधर्व आदि सभी मोहित थे । मनोमयी के पतिव्रता और सौभरि की पत्नी होने के कारण गंधर्व मनोमयी की ओर देखने का साहस नहीं कर पाते थे । लेकिन क्रौंच नाम एक दुष्ट गंधर्वसे न रहा गया । क्रोंच ऋषि पत्नीके हरण का अवसर देखने लगा । एक बार ऋषि लकड़ियां लाने वन गए । कौंच को मनोमयीके हरण का यह उचित समय लगा । वह आश्रम में आया । कौंच मनोमयी का हाथ पकड़कर खींचकर अपने साथ ले जाने लगा । ऋषि पत्नी उससे दया की भीख मांगने लगी ।*

*उसी समय सौभरि ऋषि आ पहुंचे । उन्होंने कौंचको शाप दिया- तूने चोर की तरह मेरी पत्नी का हरण करना चाहा है, तू मूषक बन जा. तुझे धरतीके भीतर छुपकर रहना पड़े और चोरी करके अपना पेट भरेगा । क्रोंच, मुनिके चरणोंमें गिरकर माफी मांगने लगा- कामदेव के प्रभाव से मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई, इसलिए मैंने ऐसा अपराध किया । आप दयालु हैं, मुझे क्षमा कर दें ।*

*बार-बार माफी मांगनेसे ऋषि पसीज गए । ऋषिने कहा- मेरा शाप व्यर्थ तो नहीं जा सकता, लेकिन इसमें सुधार कर देता हूं । इस शापके कारण तुम्हें बहुत सम्मान मिलेगा । ऋषिने कहा, द्वापरमें महर्षि पराशरके यहां गणपति गजमुख पुत्ररूप में प्रकट होंगे, तब तुम उनके वाहन बनोगे, जिससे देवगणभी तुम्हारा सम्मान करने लगेंगे ।*

*शापग्रस्त क्रोंच चूहा बन गया । उसका शरीर विशालकाय था । उद्दंडता तो उसमें पहले से ही थी । ताकतके कारण वह रास्तेमें आने वाली सारी चीज़ें नष्ट कर देता ।*

*एक बार वह महर्षि पराशरके आश्रम में पहुँच गया । वहाँ उसने आदत के अनुसार मिट्टीके सारे पात्र तोड़ दिए, आश्रम की वाटिका उजाड़ डाली । सारे वस्त्रों और ग्रंथों को कुतर दिया । भगवान गणेश भी उसी आश्रम में थे । महर्षि पराशरने चूहे की करतूत गणेशजी को बताई । भगवान गणेशने उस दुष्ट मूषक को सबक सिखाने की सोची । उन्होंने मूषक को पकड़नेके लिए अपना पाश फेंका । पाश मूषक का पीछा करता हुआ पाताल लोक तक पहुंचा । पाश मूषकके गलेमें अटक गया और मूषक बेहोश हो गया । पाशमें घिसटता हुआ मूषक गणेशजीके सम्मुख उपस्थित हुआ । जैसे ही होश आया, उसने बिना पल गंवाए गणेशजी की आराधना शुरू कर दी, और अपने प्राणों की भीख मांगने लगा ।*

*गणेशजी मूषक की आराधनासे प्रसन्न हो गए । उन्होंने कहा- तुमने लोगों को बहुत कष्ट दिए है । मैंने दुष्टोंके नाश एवं साधुओं के कल्याण के लिए ही अवतार लिया है । तुम शरणागत हो, इसलिए क्षमा करता हूं । मैं तुमसे प्रसन्न हूं कोई वरदान मांग लो । क्रौंच आदतसे मजबूर था । गणेशजीसे प्राणदान मिलते ही फिर से उसमें अहंकार जाग गया ।*

*वह गणेशजी से बोला, मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए, लेकिन यदि आप मुझसे कोई इच्छा रखते हों तो कहें मैं आपकी इच्छा पूरी कर दूंगा ।मूषक की गर्वभरी वाणी सुनकर गणेशजी मुस्कुराए और कहा- यदि तुम्हारा वचन सत्य है, तो तुम मेरा वाहन बन जाओ । मूषकने बिना देरी किए ‘तथास्तु’ कह दिया ।गणेशजी उस पर सवार हुए । गजाननके भार से दबकर उसके प्राण संकट में आ गए । उसने गणेशजीसे अपना भार कम करके वहन करने योग्य बनाने की विनती की । इस तरह मूषक का गर्व चूरकर गणेशजीने उसे अपना वाहन बना लिया । यही कारण है कि, आज भी लोग अपने घरों में चूहों के उत्पात मचाने पर भगवान गणेश को याद करते हैं।*

*गणेश पुराण कथा*
❄❄❄❄❄🏵❄❄❄❄❄

Comments